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नज़्म
ख़ुशनुमा शहरों का बानी राज़-ए-फ़ितरत का सुराग़
ख़ानदान-ए-तेग़-ए-जौहर-दार का चश्म-ओ-चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मगर मैं घर से ख़ानदान भर ख़ुशियों के लिए निकला हूँ
और वहाँ मेरा इंतिज़ार किया जा रहा है
सरवत हुसैन
नज़्म
मोहब्बत जब चमक उठती थी उस की चश्म-ए-ख़ंदाँ में
ख़मिस्तान-ए-फ़लक से नूर की सहबा छलकती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ख़ूँ चूस रहा है पौदों का इक फूल जो ख़ंदाँ होता है
पामाल बना कर सब्ज़ों को इक सर्व खरामा होता है
नुशूर वाहिदी
नज़्म
नुशूर वाहिदी
नज़्म
तिरी ख़ल्वत का हर फ़ानूस इक महताब-ए-लर्ज़ां है
तिरा अबरेशमी बिस्तर नहीं इक ख़्वाब-ए-ख़ंदाँ है
अख़्तर शीरानी
नज़्म
गुल-रुख़ों की देख कर गुल-बाज़ियाँ हर दम नज़ीर
गुल इधर ख़ंदाँ उधर धूमें मचाती है बहार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
कामरानी है पर-अफ़्शाँ मिरे रूमानों में
यास की सइ-ए-जुनूँ-ख़ेज़ पे ख़ंदाँ हूँ मैं