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नज़्म
बिजलियाँ जिस में हों आसूदा वो ख़िर्मन तुम हो
बेच खाते हैं जो अस्लाफ़ के मदफ़न तुम हो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
थे बहुत बेदर्द लम्हे ख़त्म-ए-दर्द-ए-इश्क़ के
थीं बहुत बे-मेहर सुब्हें मेहरबाँ रातों के बा'द
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
तर्क-ए-दुनिया का समाँ ख़त्म-ए-मुलाक़ात का वक़्त
इस घड़ी ऐ दिल-ए-आवारा कहाँ जाओगे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
अब उस के बा'द सुब्ह है और सुब्ह-ए-नौ 'मजाज़'
हम पर है ख़त्म शाम-ए-ग़रीबान-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
समुंदरों में उंडेल जितनी शराब चाहे
न हर्फ़ पानी पे आएगा और न उस की तक़्दीस ख़त्म होगी