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नज़्म
मगर ख़िलाफ़त को क्या विलायत मिली हुई है
मज़ीद ये क्या अवाम ओ अशराफ़ की हिमायत मिली हुई है
शहराम सर्मदी
नज़्म
अगर तेरी तमन्ना है कि शायान-ए-ख़िलाफ़त हो
तो शौक़-ए-बंदगी-ए-वाहिद-ए-क़हहार पैदा कर
अज़ीमुद्दीन अहमद
नज़्म
एक दिन हज़रत-ए-फ़ारूक़ ने मिम्बर पे कहा
क्या तुम्हें हुक्म जो कुछ दूँ तो करोगे मंज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
उड़ गया दुनिया से तू मानिंद-ए-ख़ाक-ए-रह-गुज़र
ता-ख़िलाफ़त की बिना दुनिया में हो फिर उस्तुवार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मिरी निगाह ख़ुराफ़ात-ए-माद्दी पे नहीं
ख़िरद है पस्त हक़ीक़त है अरफ़ा'उद्दरजात
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
उसे सब वहम कहते हैं ख़िलाफ़-ए-अक़्ल कहते हैं
मगर पक्का यक़ीं है जब कोई टूटा हुआ तारा