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नज़्म
लेकिन इस दर्द-ओ-ग़म ओ जब्र की वुसअत को तो देख
ज़ुल्म की छाँव में दम तोड़ती ख़िल्क़त को तो देख
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ख़िल्क़त-ए-शहर की जानिब से मलामत का अज़ाब
जिस ने अक्सर मुझे होने का यक़ीं बख़्शा था
मोहसिन नक़वी
नज़्म
अजीब उजलत अजीब वहशत अजीब ग़फ़लत का माजरा है
कहूँ मैं किस से मिरे ख़ुदाया ये कैसी ख़िल्क़त का माजरा है
इमरान शमशाद नरमी
नज़्म
मुद्दत हुई लोगों को चुप मार गई जैसे
ठुकराई हुई ख़िल्क़त जीने की कशाकश में जी हार गई जैसे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
तुम्हें दिखाऊँ
ये सेहन-ए-मस्जिद था याँ पे आयत-फ़रोश बैठे दुआएँ ख़िल्क़त को बेचते थे
अली अकबर नातिक़
नज़्म
इक नई दुनिया की ख़िल्क़त है मिरी तख़्ईल में
जो मुआविन हो सके इंसान की तकमील में
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
रौशनी बन कर ख़ुशी हर सम्त है छाई हुई
एक ख़िल्क़त जिस के जल्वों की तमाशाई हुई