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नज़्म
मिरा ईमाँ है मेरी ज़िंदगी है मेरी जन्नत है
मेरी आँखों को ख़ीरा कर गईं ताबानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वो जुनूँ जो आब-ओ-आतिश को असीर कर चुका था
वो ख़ला की वुसअ'तों से भी ख़िराज ले रहा है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
एक बोसीदा हवेली यानी फ़र्सूदा समाज
ले रही है नज़अ के आलम में मुर्दों से ख़िराज
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
जिसे पहाड़ों की ख़ुश्क संगीं बुलंदियों से ख़िराज भेजें
ग़ुलाम ज़ेहनों पे ऐसी लानत की रस्म रखना
अली अकबर नातिक़
नज़्म
ये क्या कि तुम आँसुओं में डूबे हुए खड़े हो
हज़ार बेदार लज़्ज़तों को ख़िराज देने से डर रहे हो
साक़ी फ़ारुक़ी
नज़्म
कितने जलते हुए होंटों ने लिया होगा ख़िराज
ख़ूब हँस लो तुम्हें बीते हुए लम्हों की क़सम
अख़्तर पयामी
नज़्म
जिन से तहज़ीब लिया करती है जीने का ख़िराज
जिन की हर साँस है अंदेशा-ए-फ़र्दा का निसाब