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नज़्म
अब्बास ताबिश
नज़्म
और बस्ती नहीं ये हिन्द है सुन खोल के कान
बच के चलते हैं यहाँ ख़्वाजा ख़िज़र होली में
ज़रीफ़ देहल्वी
नज़्म
कि ये शामें शबों में और शबें उजले सवेरों के
तसलसुल में गुँधी तूल-ए-अबद उम्र-ए-ख़िज़र पातीं
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
कि शामें शबों में और शबें उजले सवेरों के
तसलसुल में गुँधी तूल-ए-अबद उम्र-ए-ख़िज़र पातीं
शफ़ीक़ फातिमा शेरा
नज़्म
पानी में है चश्मों के असर आब-ए-बक़ा का
हर नख़्ल पे 'आलम ख़िज़र-ए-सब्ज़-क़बा का
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं वो हूँ जिस ने अपने ख़ून से मौसम खिलाए हैं
न-जाने वक़्त के कितने ही आलम आज़माए हैं