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नज़्म
मी न-दानी अव्वल आँ बुनियाद रा वीराँ कुनंद
मुल्क हाथों से गया मिल्लत की आँखें खुल गईं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये मजबूरी सी मजबूरी ये लाचारी सी लाचारी
कि उस के गीत भी दिल खोल कर मैं गा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मैं खो गया हूँ कई बार इस नज़ारे में
वो उस की गहरी जड़ें थीं कि ज़िंदगी की जड़ें?
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
ले जानी अब अपने मन के पैराहन की गिर्हें खोल
ले जानी अब आधी शब है, चार तरफ़ सन्नाटा है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मिरे बाज़ू पे जब वो ज़ुल्फ़-ए-शब-गूँ खोल देती थी
ज़माना निकहत-ए-ख़ुल्द-ए-बरीं में डूब जाता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
आई तब रिश्वत की चिड़िया पँख अपने खोल कर
वर्ना मर जाते मियाँ कुत्ते की बोली बोल कर