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नज़्म
सुब्ह सुब्ह इक ख़्वाब की दस्तक पर दरवाज़ा खोला' देखा
सरहद के उस पार से कुछ मेहमान आए हैं
गुलज़ार
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
रह-गुज़र, साए, शजर, मंज़िल-ओ-दर, हल्का-ए-बाम
बाम पर सीना-ए-महताब खुला, आहिस्ता
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
नून मीम राशिद
नज़्म
किसी पर बंद होने का नहीं मय-ख़ाना-ए-उलफ़त
चले आओ खुला रहता है मय-ख़ाना कनहैया का