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नज़्म
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की
ख़ुम, शीशे, जाम, झलकते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
बादा है नीम-रस अभी शौक़ है ना-रसा अभी
रहने दो ख़ुम के सर पे तुम ख़िश्त-ए-कलीसिया अभी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अमाँ कैसी कि मौज-ए-ख़ूँ अभी सर से नहीं गुज़री
गुज़र जाए तो शायद बाज़ू-ए-क़ातिल ठहर जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
जब लगाया हक़ का नारा दार पर खींचा गया
नख़्ल-ए-सनअ'त इस के ख़ूँ की धार पर सींचा गया
सय्यद मोहम्मद जाफ़री
नज़्म
मिरा कुछ भी नहीं इस ज़िंदगी के बादा-ख़ाने में
ये ख़ुम ये जाम ये शीशे ये पैमाने किसी के हैं
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
तमाम-उम्र दिल-ए-ख़ुद-निगर की नज़्र हुई
अधूरे ख़्वाब हैं दामन में तिश्ना-लब बातें
अब्दुल अज़ीज़ ख़ालिद
नज़्म
अमजद नजमी
नज़्म
शराब-ए-हुस्न लुटाई है तू ने ख़ुम के ख़ुम
रहेगा कैफ़ से सरशार बादा-ख़्वार तिरा
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
झिलमिलाता जा रहा है तुंद आँधी में चराग़
मिल रहा है ख़ून के क़तरों से मंज़िल का सुराग़
अख़्तर पयामी
नज़्म
शाइ'र-ए-हिन्दोस्ताँ ऐ शाइ'र-ए-जादू-बयाँ
हिन्द के ख़ुम-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ के ऐ पीर-ए-मुग़ाँ