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नज़्म
चश्मक-ए-दम-ब-दम नहीं मश्क़-ए-ख़िराम-ओ-रम नहीं
मेरे ग़ज़ाल क्या हुए मेरे ख़ुतन को क्या हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नागाह लहकते खेतों से टापों की सदाएँ आने लगीं
बारूद की बोझल बू ले कर पच्छिम से हवाएँ आने लगीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मिरा रोना नहीं रोना है ये सारे गुलिस्ताँ का
वो गुल हूँ मैं ख़िज़ाँ हर गुल की है गोया ख़िज़ाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर