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नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
नसरीन अंजुम भट्टी
नज़्म
तो तुम से मुस्तआ'र ले लूँगा ये एहतियात
तुम अपने घर की अँगेठी में कड़कड़ाती लकड़ियों के कोएलों से
ज़ाहिद हसन
नज़्म
कौसर महमूद
नज़्म
संसार के सारे मेहनत-कश खेतों से मिलों से निकलेंगे
बे-घर बे-दर बे-बस इंसाँ तारीक बिलों से निकलेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
नागाह लहकते खेतों से टापों की सदाएँ आने लगीं
बारूद की बोझल बू ले कर पच्छिम से हवाएँ आने लगीं
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मश्रिक-ओ-मग़रिब की क़ौमों के लिए रोज़-ए-हिसाब
इस से बढ़ कर और क्या होगा तबीअ'त का फ़साद
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मोहब्बत ही से पाई है शिफ़ा बीमार क़ौमों ने
किया है अपने बख़्त-ए-ख़ुफ़्ता को बेदार क़ौमों ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दयार-ए-शर्क़ की आबादियों के ऊँचे टीलों पर
कभी आमों के बाग़ों में कभी खेतों की मेंडों पर
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
नौ-ए-इंसाँ में ये सरमाया ओ मेहनत का तज़ाद
अम्न ओ तहज़ीब के परचम तले क़ौमों का फ़साद