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नज़्म
सुब्ह को इस के लिए क्या क्या तरसती है नसीम
क्या क़यामत है गुल-ए-शब-बू की जाँ-परवर शमीम
सय्यद मोहम्मद हादी
नज़्म
हम तो मजबूर थे इस दिल से कि जिस में हर दम
गर्दिश-ए-ख़ूँ से वो कोहराम बपा रहता है