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नज़्म
क्यूँ दाद-ए-ग़म हमीं ने तलब की बुरा किया
हम से जहाँ में कुश्ता-ए-ग़म और क्या न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सरज़द हुए थे मुझ से ख़ुदा जाने क्या गुनाह
मंजधार में जो यूँ मिरी कश्ती हुई तबाह
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
''ताज़ आग़ोश-ए-विदाइ'श दाग़-ए-हैरत चीदा अस्त
हम-चू शम-ए-कुश्ता दर-चश्म-ए-निगह ख़्वाबीदा अस्त''
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कुश्ता-ए-मग़रिब निगार-ए-शर्क़ के अबरू भी देख
साज़-ए-बे-रंगी के जूया सोज़-ए-रंग-ओ-बू भी देख
जोश मलीहाबादी
नज़्म
हर एक कुश्ता-ए-ना-हक़ की ख़ामुशी पे सलाम
हर एक दीदा-ए-पुर-नम की आब-ओ-ताब की ख़ैर
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सितम की दास्ताँ कुश्ता दिलों का माजरा कहिए
जो ज़ेर-ए-लब न कहते थे वो सब कुछ बरमला कहिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
फिर दुहल करने लगे तशहीर-ए-इख़लास-ओ-वफ़ा
कुश्ता-ए-सिदक़-ओ-सफ़ा का दिल जलाने के लिए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
सच बता तू भी है क्या ऐ कुश्ता-ए-सद-हिर्स-ओ-आज़
राज़-दान-ए-काकुल-ए-शब-रंग ओ चश्म-ए-नीम-बाज़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
गुलू-ए-कुश्ता से बेहिस ज़बान-ए-ख़ंजर से
सदा लपकती है हर सम्त हर्फ़-ए-हक़ की तरह
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
हम तो बस तिश्ना-दहन लब-ब-दुआ कुश्ता-ए-ग़म
अपने होने ही में गुम पढ़ न सके हैं अब तक
मोहम्मद अफ़सर साजिद
नज़्म
मिरी नमाज़ ''नज़र'' शैख़ की नमाज़ ''अल्फ़ाज़''
यहाँ चराग़ वहाँ सिर्फ़ शम-ए-कुश्ता का दूद
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आशिक़-ए-नाम-ए-वतन कुश्ता-ए-अरमान-ए-वफ़ा
मर्द-ए-मैदान-ए-वफ़ा जिस्म-ए-वफ़ा जान-ए-वफ़ा