aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "lauTaa.e"
वो दिन कि जिस का वादा हैजो लौह-ए-अज़ल में लिख्खा है
दम-ए-तक़रीर थी मुस्लिम की सदाक़त बेबाकअदल उस का था क़वी लौस-ए-मराआत से पाक
मजबूरी या महजूरी की थकन से लौटा करते हैंतुम जाओ
वापस नहीं फेरा कोई फ़रमान जुनूँ कातन्हा नहीं लौटी कभी आवाज़ जरस की
मगर मुझ को लौटा दो वो बचपन का सावनवो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी
राम बन-बास से जब लौट के घर में आएयाद जंगल बहुत आया जो नगर में आए
मुँह बिसोरे लौटता हूँरात भर फिर बड़बड़ाता हूँ
प्यार की आख़िरी पूँजी भी लुटा आया हूँअपनी हस्ती को भी लगता है मिटा आया हूँ
ख़ुद तो रहते हैं बहुत तंग-ओ-परेशान मगरदौलत-ए-इल्म लुटाते हैं हमारे उस्ताद
वो लौटता है कहीं रात देर को दिन भरवजूद उस का पसीने में ढल के बहता है
बस इक दिन दिल की लौह-ए-मुंतज़िर परआचानक
मैं कूज़ों की तरफ़ अपने तग़ारों की तरफ़अब जो बग़दाद से लौटा हूँ
उस को काम बतायाफिर वो घर की जानिब लौटे
न दिल में लौह-ए-जबीं से किया उजाला भीवो माँ कभी जो मुझे बद्धियाँ पहना न सकी
लौह-ए-जहाँ पर नाम तुम्हारा लिखा रहेगा यूँही'जालिब' सच का दम भर जाना सच ही लिखते जाना
जो समाँ बीत जाए पलटता नहींजाने वाले नहीं लौटते उम्र भर
दूर रेग ओ हवा की यादों में लोटता है)जो बहते पानी को अपनी दरिया-दिली की
हुस्न-ए-महबूब के सय्याल तसव्वुर की तरहअपनी तारीकी को भेंचे हुए लिपटाए हुए
न रिफ़अत-ए-मक़ाम है न शोहरत-ए-दवाम हैये लौह-ए-दिल ये लौह-ए-दम
कम-हिम्मती का दिल से नाम-ओ-निशाँ मिटा दोजुरअत का लौह-ए-दिल पर नक़्शा जमाए जाओ
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