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नज़्म
कैसे इक फ़र्द के होंटों की ज़रा सी जुम्बिश
सर्द कर सकती थी बे-लौस वफ़ाओं के चराग़
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दो शम्ओं' की लौ पेचाँ जैसे इक शो'ला-ए-नौ बन जाने की
दो धारें जैसे मदिरा की भरती हुइ किसी पैमाने की
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
आज पहली बार तेरी क़ब्र पर आया हूँ मैं
बे-नवा हूँ नज़्र को बे-लौस दिल लाया हूँ मैं
जगन्नाथ आज़ाद
नज़्म
ज़िंदगी में मरने वाले की कोई पैग़ाम है
बे-ग़रज़ बे-लौस ख़िदमत की सला-ए-आम है
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
अहमद हमेश
नज़्म
देख ऐ दोस्त मिरे जज़्बा-ए-उल्फ़त को देख
मेरी बे-लौस वफ़ा पाक मोहब्बत को देख