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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
कल वॉशिंगटन शहर की हम ने सैर बहुत की यार
गूँज रही थी सब दुनिया में जिस की जय-जय-कार
अहमद फ़राज़
नज़्म
वो माँ हो बहन बीवी या कि बेटी हो सुनो लोगो
हर इक किरदार में रक्खा गया ग़म-ख़्वार औरत को
अरशद महमूद अरशद
नज़्म
मैं अक्सर देखने जाता था उस को जिस की माँ मरती
और अपने दिल में कहता था ये कैसा शख़्स? है अब भी
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
नज़्म
लाखों आईने मौजों में बिखरे हुए
कश्तियाँ बादबानों के आँचल में अपने सरों को छुपाए हुए
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
तारीकियों की देवियाँ करने लगीं सरगोशियाँ
इक धीमी धीमी तान में गाने लगीं ख़ामोशियाँ