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नज़्म
वो हुस्न के दरिया की थी इक माही-ए-बे-ताब
छींटों से वफ़ा के जिसे ख़ालिक़ ने निखारा
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
तेरा चेहरा अर्ग़वानी तेरा दिल-ए-बे-आब-ओ-रंग
ज़िंदगी क्या है तिरी क़ानून से फ़ितरत के जंग