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नज़्म
आ कि वाबस्ता हैं उस हुस्न की यादें तुझ से
जिस ने इस दिल को परी-ख़ाना बना रक्खा था
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
है कोई तो बात जो वो आवाज़ दबाने पे आमादा है
लगा ले जितना दम हो अपना भी मज़बूत इरादा है
सचिन देव वर्मा
नज़्म
दिल के ऐवाँ में लिए गुल-शुदा शम्ओं की क़तार
नूर-ए-ख़ुर्शीद से सहमे हुए उकताए हुए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हर इक लम्हा जो मुस्तक़बिल था माज़ी बनता जाता है
अगर चाहो तो इस लम्हे को उम्र-ए-जावेदाँ समझो