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नज़्म
मौत ने कितने घूँघट मारे बदले सौ सौ भेस
काल बकुट फैलाए रहा है बीमारी का जाल रे साथी
वामिक़ जौनपुरी
नज़्म
रग रग में लहू को गर्माते जाते हैं वतन की जय गाते
हम अहद-ए-जवानी के माते बूढ़ों का ज़माना क्या जानें
शमीम करहानी
नज़्म
नींद के माते अँधियारों की ज़ालिम क़ातिल रौशनियाँ
दिए की लौ में जलने वाली झिलमिल झिलमिल रौशनियाँ
क़मर जमील
नज़्म
जोगी भी जो नगर नगर में मारे मारे फिरते हैं
कासा लिए भबूत रमाए सब के द्वारे फिरते हैं
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
मता-ए-दिल मता-ए-जाँ तो फिर तुम कम ही याद आओ
बहुत कुछ बह गया है सैल-ए-माह-ओ-साल में अब तक
जौन एलिया
नज़्म
मोहब्बत अपनी यक-तौरी में दुश्मन है मोहब्बत की
सुख़न माल-ए-मोहब्बत की दुकान-आराई करता है
जौन एलिया
नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ