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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेंह की बूँदों की तरह हो गए सस्ते क्यूँ आज
मोतियों से कहीं महँगे थे तुम्हारे आँसू
अख़्तर शीरानी
नज़्म
घर के बाहर लॉन भी होगा गेंदा और गुल-मोहर के फूल
खरी खाट नहीं रखेंगे बेड बड़े महँगे होंगे
अबु बक्र अब्बाद
नज़्म
नई दुनिया में लेकिन मौसमी मेवे भी महँगे हैं
अगर मैं वो पुराने ख़्वाब ले लेता तो अच्छा था