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नज़्म
उम्मतें गुलशन-ए-हस्ती में समर-चीदा भी हैं
और महरूम-ए-समर भी हैं ख़िज़ाँ-दीदा भी हैं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
चाहता हूँ यूँ हो रंगीं पैरहन और सारियाँ
शुस्त-ओ-शू से भी न ज़ाइल हो सकें गुल-कारियाँ