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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तो मुझ पे करता था जादू सा हुस्न-ए-इंसानी
कुछ ऐसा होता था महसूस जब मैं देखता था
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
न कोई साँवले महबूब की यादों का अफ़्साना
न ऐवान-ए-ज़मिस्ताँ की तरफ़ जाने की कुछ ख़्वाहिश
ख़लील-उर-रहमान आज़मी
नज़्म
मुझे तेरे तसव्वुर से ख़ुशी महसूस होती है
दिल-ए-मुर्दा में भी कुछ ज़िंदगी महसूस होती है
कँवल एम ए
नज़्म
मुँह धो कर जब उस ने मुड़ कर मेरी जानिब देखा
मुझ को ये महसूस हुआ जैसे कोई बिजली चमकी है