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नज़्म
फ़रेब-ओ-मक्र से अपने ये हर-सू क़हर ढाती है
सियासत आज-कल की कैसे कैसे गुल खिलाती है
रहबर जौनपूरी
नज़्म
ये ख़्वाहिशों के पुजारी ये मस्लहत के ग़ुलाम
फ़रेब-ओ-मक्र के क़िस्से मुनाफ़िक़त के नाम
नासिरा ज़ुबेरी
नज़्म
ऐ ज़न-ए-नापाक फ़ित्रत-ए-पैकर-ए-मकर-ओ-रिया
दुश्मन-ए-मेहर-ओ-वफ़ा ग़ारत-गर-ए-शर्म-ओ-हया
माहिर-उल क़ादरी
नज़्म
हम ने समझ लिया कि जहाँ से गुज़र गए
जब दिल ही मर गया तो सब अरमान मर गए