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नज़्म
हुई जाती है नज़्र-ए-शोरिश-ए-आह-ओ-फ़ुग़ां उर्दू
कहे किस से यहाँ अपने ग़मों की दास्ताँ उर्दू
रहबर जौनपूरी
नज़्म
आह-ए-दिल-ए-मुज़्तर की तासीर नज़र आई
क्या ख़्वाब-ए-मोहब्बत की ता'बीर नज़र आई
सयय्द महमूद हसन क़ैसर अमरोही
नज़्म
कैलाश माहिर
नज़्म
ख़ाक उड़ती है जहाँ क़हक़हे होते थे बुलंद
नग़्मा-ए-बज़्म है अब आह-ओ-फ़ुग़ाँ की मानिंद
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
ग़म के तराने छोड़ के ख़ुशियों के गीत गा
मुश्किल को सहल करते हैं आह-ओ-फ़ुग़ाँ कहीं
जयकृष्ण चौधरी हबीब
नज़्म
मैं नहीं लाश है गोया किसी परवाने की
एक इक जुम्बिश-ए-लब आह-ओ-फ़ुग़ाँ का पैग़ाम