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नज़्म
दर्द-ए-उल्फ़त यूँही था रग रग में सारी हाए हाए
क्यूँ लगाया फिर वफ़ा का ज़ख़्म-ए-कारी हाए हाए
ज़े ख़े शीन
नज़्म
रहम ऐ नक़्क़ाद-ए-फ़न ये क्या सितम करता है तू
कोई नोक-ए-ख़ार से छूता है नब्ज़-ए-रंग-ओ-बू
जोश मलीहाबादी
नज़्म
रुख़्सत हुआ वो बाप से ले कर ख़ुदा का नाम
राह-ए-वफ़ा की मंज़िल-ए-अव्वल हुई तमाम