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नज़्म
इलाही फिर मज़ा क्या है यहाँ दुनिया में रहने का
हयात-ए-जावेदाँ मेरी न मर्ग-ए-ना-गहाँ मेरी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आलम-ए-सोज़-ओ-साज़ में वस्ल से बढ़ के है फ़िराक़
वस्ल में मर्ग-ए-आरज़ू! हिज्र में ल़ज़्जत-ए-तलब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो मर्ग-ए-भीष्म-पितामह वो सेज तीरों की
वो पांचों पांडव की स्वर्ग-यात्रा की कथा
फ़िराक़ गोरखपुरी
नज़्म
तक़दीर के क़ाज़ी का ये फ़तवा है अज़ल से
है जुर्म-ए-ज़ईफ़ी की सज़ा मर्ग-ए-मुफ़ाजात!