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नज़्म
ये लुत्फ़ देख देख कर ज़बाँ पे बार बार है
ये मौसम-ए-बहार है ये मौसम-ए-बहार है
मोहम्मद शफ़ीउद्दीन नय्यर
नज़्म
और मौसम-ए-बहार का आग़ाज़ हो जाता है
काग़ज़ पर तुम्हारे नाम से इक बेल फूटती है
मुबश्शिर अली ज़ैदी
नज़्म
बन के हम दोनों रफ़ीक़-ए-मौसम-ए-जोश-ए-बहार
करते ख़ुश ख़ुश हर बरस गुल-गश्त-ए-दश्त-ओ-कोहसार
सुरूर जहानाबादी
नज़्म
तेरा ये रंगीन मंज़र इक तिलिस्म-ए-ख़्वाब है
तेरी ये शोख़ी है या इक मौजा-ए-बेताब है