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नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मदिरा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
और ये सफ़्फ़ाक मसीहा मिरे क़ब्ज़े में नहीं
इस जहाँ के किसी ज़ी-रूह के क़ब्ज़े में नहीं
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
है मेरी ज़िंदगी अब रोज़-ओ-शब यक-मज्लिस-ए-ग़म-हा
अज़ा-हा मर्सिया-हा गिर्या-हा आशोब-ए-मातम-हा
जौन एलिया
नज़्म
कार-ख़ानों के भूके जियालों के नाम
बादशाह-ए-जहाँ वाली-ए-मा-सिवा, नाएब-उल-अल्लाह फ़िल-अर्ज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मुझ को है फ़ख़्र कि उस क़ौम से निस्बत है मिरी
फ़ातिमा मरियम-ओ-सीता सी हैं रहबर जिस की