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नज़्म
मैं अशराफ़-ए-कमीना-कार को ठोकर पे रखता था
सो मैं मेहनत-कशों की जूतियाँ मिम्बर पे रखता था
जौन एलिया
नज़्म
हवस बाला-ए-मिम्बर है तुझे रंगीं-बयानी की
नसीहत भी तिरी सूरत है इक अफ़्साना-ख़्वानी की
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ाली हैं गरचे मसनद ओ मिम्बर, निगूँ है ख़ल्क़
रोअब-ए-क़बा ओ हैबत-ए-दस्तार देखना
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ताक़ में शम्अ के आँसू हैं अभी तक बाक़ी
अब मुसल्ला है न मिम्बर न मुअज़्ज़िन न इमाम
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
एक दिन हज़रत-ए-फ़ारूक़ ने मिम्बर पे कहा
क्या तुम्हें हुक्म जो कुछ दूँ तो करोगे मंज़ूर
शिबली नोमानी
नज़्म
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
कलीसा के धुआँ देते हुए हर ताक़ में आँखें
ये आँखें मिम्बर-ओ-मेहराब में आँखें