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नज़्म
मस्जिद-ओ-मिम्बर-ओ-मेहराब का पाबंद है तू
मैं हर इक ज़र्रे में तनवीर-ए-ख़ुदा पाता हूँ
मैकश हैदराबादी
नज़्म
कलीसा के धुआँ देते हुए हर ताक़ में आँखें
ये आँखें मिम्बर-ओ-मेहराब में आँखें
मोहम्मद अनवर ख़ालिद
नज़्म
वो शहीद-ए-शेवा-ए-दिलबरी वो क़तील-ए-नावक-ए-दोस्ती
वो ख़तीब-ए-मिम्बर-ए-आश्ती उसे अपनी क़ौम ने क्या दिया
फैज़ तबस्सुम तोंसवी
नज़्म
शो'ला-ज़न उन के लहू में है जलाल-ए-महमूद
आज तक जो तह-ए-मेहराब रहे वक़्फ़-ए-सुजूद
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
तू ने जिस आवाज़ को पाला है मर मर कर 'फ़िराक़'
आज उसी की नर्म लौ है शम-ए-मेहराब-ए-हयात