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नज़्म
बाद-ए-मुराद ओ चश्मक-ए-तूफ़ाँ लिए हुए
हूँ बू-ए-ज़ुल्फ़-ओ-जुंबिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
जोश मलीहाबादी
नज़्म
आ कि तुझ को साहिब-ए-महर-ओ-वफ़ा करते हैं हम
ले ख़ुद अपनी जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ अता करते हैं हम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
मक़बरों की शान हैरत-आफ़रीं है इस क़दर
जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से है चश्म-ए-तमाशा को हज़र
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उमीदें डाल कर आँखों में आँखें मुस्कुराती हैं
ज़माना जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ से अफ़्साने सुनाता है
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में ग़लताँ साज़-ए-ग़म का ज़ेर ओ बम
ख़ामुशी में पर-फ़िशाँ ईफ़ा-ए-पैमाँ की क़सम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ के ज़ेर-ए-साया नादारी की रात
जौहर-ए-इंसानियत जोड़े हुए आँखों में हात
जोश मलीहाबादी
नज़्म
वो जिन को इस तरह कुछ जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ सुनाती है
कि जैसे ख़्वाब में भूली हुई इक याद आती है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
दरस-ए-सुकून-ओ-सब्र ब-ईं एहतिमाम-ए-नाज़
निश्तर-ज़नी-ए-जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ लिए हुए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सेहर ओ एजाज़ लिए जुम्बिश-ए-मिज़्गान-ए-दराज़
ख़ंदा-ए-शोख़ जमाल-ए-दुर-ए-ख़ुश-आब लिए
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
फिर दिल में दर्द सिलसिला-ए-जुम्बा है क्या करूँ
फिर अश्क गर्म-ए-दावत-ए-मिज़्गाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
लर्ज़िश-ए-लब में शराब-ओ-शेर का तूफ़ान है
जुम्बिश-ए-मिज़्गाँ में अफ़्सून-ए-ग़ज़ल-ख़्वानी है आज