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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हरकतों से तंग उस की सब मोहल्ला-दार थे
प्यार करता ही न था कोई सभी बेज़ार थे
मुर्तजा साहिल तस्लीमी
नज़्म
कि जिन टुकड़ों के टुकड़ों में कहीं इक शहर बस्ता है
कि जिस के एक टुकड़े में पुराना इक मोहल्ला है
फ़ैसल अज़ीम
नज़्म
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के