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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मेरे इक प्यादे ने तेरा चाँद का मुहरा मार लिया
मौत को शह दे कर तुम ने समझा था अब तो मात हुई
गुलज़ार
नज़्म
दूसरे दोहरे के रस्ते में तीसरा खेल का मुहरा है
तीसरा तिहरा जो है उस का सब से उजागर चेहरा है
मीराजी
नज़्म
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अन-गिनत लोगों ने दुनिया में मोहब्बत की है
कौन कहता है कि सादिक़ न थे जज़्बे उन के
साहिर लुधियानवी
नज़्म
आमद-ए-सुब्ह के, महताब के, सय्यारों के गीत
तुझ से मैं हुस्न-ओ-मोहब्बत की हिकायात कहूँ