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नज़्म
दहन ख़मोश ज़बाँ चुप लबों पे मोहर-ए-सुकूत
मिरी हयात का मक़्सद है ग़म पे ग़म खाएँ
aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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दहन ख़मोश ज़बाँ चुप लबों पे मोहर-ए-सुकूत
मिरी हयात का मक़्सद है ग़म पे ग़म खाएँ