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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हो के अब मोहतात मैं खेलूँगा अगले मैच में
हर दफ़ा ये कह के अपने दिल को समझता हूँ मैं
इनायत अली ख़ाँ
नज़्म
तेरी मासूम मोहब्बत के तक़ाज़ों में रहे
दिल के नग़्मों पे रहे प्यार के गीतों पे रहे