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नज़्म
तुम ने ख़्वाबों में न आने की क़सम खाई थी
क्यों मुख़िल आ के हुए फिर मिरी तन्हाई में
सफ़दर आह सीतापुरी
नज़्म
हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे-नूरी पे रोती है
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा-वर पैदा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उस रोज़ हमें मालूम हुआ उस शख़्स का मुश्किल समझाना
इस बस्ती के इक कूचे में इक 'इंशा' नाम का दीवाना