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नज़्म
यूँ कहने को राहें मुल्क-ए-वफ़ा की उजाल गया
इक धुँद मिली जिस राह में पैक-ए-ख़याल गया
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
इक़बाल सुहैल
नज़्म
ब-हर-उनवाँ यही इक पेशवा-ए-हुस्न-ओ-ख़ूबी है
ग़लत है एशिया में मोरिद-ए-इल्ज़ाम है उर्दू
माजिद-अल-बाक़री
नज़्म
उसी की सर-बुलंदी से वतन की सर-बुलंदी है
मैं एहसास-ए-वक़ार-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत पेश करता हूँ
तकमील रिज़वी लखनवी
नज़्म
हर तरह होती है ख़ुश-वक़्ती-ओ-ख़ूबी बहबूद
ख़ुश-दिली ताज़गी और ख़ुर्मी करती है दुरूद
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
वो जिन में मुल्क-ए-बर्क़-ओ-बाद तक तस्ख़ीर होता है
जहाँ इक शब में सोने का महल तामीर होता है
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
गर फ़िक्र-ए-ज़ख्म की तो ख़ता-वार हैं कि हम
क्यूँ महव-ए-मद्ह-ए-खूबी-ए-तेग़-ए-अदा न थे
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तू जिस घर में रहे ख़ुशियाँ वहीं आबाद हो जाएँ
तू मुल्क-ए-नाज़-ओ-ने'मत की हो शहज़ादी मुबारक हो