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नज़्म
मियान-ए-शाख़-साराँ सोहबत-ए-मुर्ग़-ए-चमन कब तक
तिरे बाज़ू में है परवाज़-ए-शाहीन-ए-क़हस्तानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़ितना-ए-फ़र्दा की हैबत का ये आलम है कि आज
काँपते हैं कोहसार-ओ-मुर्ग़-ज़ार-ओ-जूएबार
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
फ़िक्र-ए-इंसाँ पर तिरी हस्ती से ये रौशन हुआ
है पर-ए-मुर्ग़-ए-तख़य्युल की रसाई ता-कुजा
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मुर्ग़-ज़ारों में दिखाती जू-ए-शीरीं का ख़िराम
वादियों में अब्र के मानिंद मंडलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
ज़िंदगी इंसाँ की है मानिंद-ए-मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा
शाख़ पर बैठा कोई दम चहचहाया उड़ गया
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ऐ कि तेरा मुर्ग़-ए-जाँ तार-ए-नफ़स में है असीर
ऐ कि तेरी रूह का ताइर क़फ़स में है असीर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कहाँ की तू ने ये तर्ज़-ए-फ़ुग़ाँ उड़ाई है
तुझे बहार का इक मुर्ग़-ए-ख़ुश-नवा समझूँ