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नज़्म
''चौकी आँगन में बिछी वास्ती दूल्हा के लिए''
मक्के मदीने के पाक मुसल्ले पयम्बर घर नवासे
जौन एलिया
नज़्म
किया रिफ़अत की लज़्ज़त से न दिल को आश्ना तू ने
गुज़ारी उम्र पस्ती में मिसाल-ए-नक़्श-ए-पा तू ने
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो मिसाल-ए-शम्अ रौशन महफ़िल-ए-क़ुदरत में है
आसमाँ इक नुक़्ता जिस की वुसअत-ए-फ़ितरत में है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
क़मर अपने लिबास-ए-नौ में बेगाना सा लगता था
न था वाक़िफ़ अभी गर्दिश के आईन-ए-मुसल्लम से
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ये गीत मिस्ल-ए-शोला-ए-जव्वाला तुंद-ओ-तेज़
इस की लपक से बाद-ए-फ़ना का जिगर गुदाज़
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ताक़ में शम्अ के आँसू हैं अभी तक बाक़ी
अब मुसल्ला है न मिम्बर न मुअज़्ज़िन न इमाम
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
तेरी पेशानी पे झलकेगा मिसाल-ए-बर्क़-ए-तूर
तिफ़्ल का नाज़-ए-शराफ़त और शौहर का ग़ुरूर
जोश मलीहाबादी
नज़्म
अपने सुक्कान-ए-कुहन की ख़ाक का दिल-दादा है
कोह के सर पर मिसाल-ए-पासबाँ इस्तादा है