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नज़्म
गाजर शलजम और मूली ने कहा कि चौपट है बैंगन
दूसरों के बारे में यूँ तो सब कुछ कहना है आसान
शौकत परदेसी
नज़्म
इक महल की आड़ से निकला वो पीला माहताब
जैसे मुल्ला का अमामा जैसे बनिए की किताब
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
क्या मसनद तकिया मुल्क मकाँ क्या चौकी कुर्सी तख़्त छतर
सब ठाठ पड़ा रह जावेगा जब लाद चलेगा बंजारा
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मी न-दानी अव्वल आँ बुनियाद रा वीराँ कुनंद
मुल्क हाथों से गया मिल्लत की आँखें खुल गईं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मैं वो नग़्मा हूँ जिसे प्यार की महफ़िल न मिली
वो मुसाफ़िर हूँ जिसे कोई भी मंज़िल न मिली