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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
थे हर काख़-ओ-कू और हर शहर-ओ-क़रिया की नाज़िश
थे जिन से अमीर ओ गदा के मसाकिन दरख़्शाँ
नून मीम राशिद
नज़्म
काँटे भी राह में हैं फूलों की अंजुमन भी
तुम फ़ख़्र-ए-क़ौम बनना और नाज़िश-ए-वतन भी
अहमद हातिब सिद्दीक़ी
नज़्म
बरहम है ज़ुल्फ़-ए-कुफ़्र तो ईमाँ सर-निगूँ
वो फ़ख़्र-ए-कुफ्र ओ नाज़िश-ए-ईमाँ चला गया
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
इक गुल-ए-ताज़ा जो मुरझा कर भी मुरझाया नहीं
सफ़्हा-ए-हस्ती पे नक़्श-ए-जावेदाँ पैदा हुआ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
अंदाज़-ए-दिल-फ़रेबी जो तुझ में है कहाँ है
फ़ख़्र-ए-ज़माना तू है और नाज़िश-ए-जहाँ है
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
न हुआ पर न हुआ 'मीर' का अंदाज़ नसीब
'नाज़िश' अग़्यार ने यूँ ज़ोर तो मारा क्या क्या