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नज़्म
जिन के दिल कुचले हुए जिन की तमन्ना पाएमाल
झाँकता है जिन की आँखों से जहन्नम का जलाल
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
हमारी ही तरह जो पाएमाल-ए-सतवत-ए-मीरी-ए-ओ-ए-शाही में
लिखोखा आबदीदा पा-पियादा दिल-ज़दा वामाँदा राही हैं
मजीद अमजद
नज़्म
रोज़ ओ शब क़ौमों को होती है तरक़्क़ी या ज़वाल
कर सका लेकिन न तुझ को दौर-ए-गर्दूं पाएमाल
सफ़ीर काकोरवी
नज़्म
इस ख़ुशी के वक़्त कितने दिल हैं ग़म से पाएमाल
लुत्फ़ आ जाए अगर इन सब की ग़म-ख़्वारी भी हो
अर्श मलसियानी
नज़्म
चंद दिन गर और चलता वो ज़माना अपनी चाल
हम को कर देती ज़ईफ़-उल-ए'तिक़ादी पाएमाल
जगत मोहन लाल रवाँ
नज़्म
अगर कोह-ए-गिराँ भी होगा अपनी राह में हाइल
उसे भी पाएमाल-ए-अज़्म-ओ-हिम्मत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
जो निगाह-ए-अहल-ए-सर्वत में हक़ीर-ओ-पाएमाल
ज़िंदगानी वक़्फ़ थी जिस की बराए अहल-ए-ज़र