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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
जो रातों में मिरी ख़ातिर बहुत बेचैन रहती है
जो मेरे जागने से पहले पहले जाग जाती है
सुलैमान जाज़िब
नज़्म
सस्ता सौदा देख के आख़िर में पगली मुस्काई
जीवन भर का रोग समेट के मैं कैसी इठलाई
सज्जाद बाक़र रिज़वी
नज़्म
क़ौम के ठेके-दारों का मज़हका उड़ाती पगली
फटे हुए कपड़ों में लिपटी जूठन खाती पगली
मारूफ़ रायबरेलवी
नज़्म
चाहते सब हैं कि हों औज-ए-सुरय्या पे मुक़ीम
पहले वैसा कोई पैदा तो करे क़ल्ब-ए-सलीम