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नज़्म
हर बात की खोज तो ठीक नहीं तुम हम को कहानी कहने दो
उस नार का नाम मक़ाम है क्या इस बात पे पर्दा रहने दो
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
घर-बार अटारी चौपारी क्या ख़ासा नैन-सुख और मलमल
चलवन पर्दे फ़र्श नए क्या लाल पलंग और रंग-महल
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हिजाब-ए-फ़ित्ना-परवर अब उठा लेती तो अच्छा था
ख़ुद अपने हुस्न को पर्दा बना लेती तो अच्छा था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरी
देव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुड़गुड़ाती हुई पान की पीकों में वो दाद वो वाह वा
चंद दरवाज़ों पे लटके हुए बोसीदा से कुछ टाट के पर्दे
गुलज़ार
नज़्म
जो है पर्दों में पिन्हाँ चश्म-ए-बीना देख लेती है
ज़माने की तबीअत का तक़ाज़ा देख लेती है