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नज़्म
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशाँ क्यूँ हो
जगमगाते हुए लम्हों से गुरेज़ाँ क्यूँ हो
कफ़ील आज़र अमरोहवी
नज़्म
परेशाँ हूँ मैं मुश्त-ए-ख़ाक लेकिन कुछ नहीं खुलता
सिकंदर हूँ कि आईना हूँ या गर्द-ए-कुदूरत हूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आह सीमाब-ए-परेशाँ अंजुम-ए-गर्दूं-फ़रोज़
शोख़ ये चिंगारियाँ ममनून-ए-शब है जिन का सोज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर उस्मानी
नज़्म
मौत और ज़ीस्त के संगम पे परेशाँ क्यूँ हो
उस का बख़्शा हुआ सह-रंग-ए-अलम ले के चलो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
ये भी पोछेंगे कि तुम इतनी परेशाँ क्यूँ हो
उँगलियाँ उट्ठेंगी सूखे हुए बालों की तरफ़