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नज़्म
पलक तक उस ने मरने के लिए जीने न दी मुझ को
''मैं तेरे इश्क़ में रंजीदा हूँ हाँ अब भी कुछ कुछ हूँ
जौन एलिया
नज़्म
जिस के पर्दों में नहीं ग़ैर-अज़-नवा-ए-क़ैसरी
देव-ए-इस्तिब्दाद जम्हूरी क़बा में पा-ए-कूब
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो है पर्दों में पिन्हाँ चश्म-ए-बीना देख लेती है
ज़माने की तबीअत का तक़ाज़ा देख लेती है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
दूर साहिल पे वो शफ़्फ़ाफ़ मकानों की क़तार
सरसराते हुए पर्दों में सिमटते गुलज़ार