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नज़्म
इन में सच्चे मोती भी हैं, इन में कंकर पत्थर भी
इन में उथले पानी भी हैं, इन में गहरे सागर भी
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ले के इक चंगेज़ के हाथों से ख़ंजर तोड़ दूँ
ताज पर उस के दमकता है जो पत्थर तोड़ दूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
वही तो हैं जिन्हों ने मुझ को पैहम रंग थुकवाया
वो किस रग का लहू है जो मियाँ मैं ने नहीं थूका
जौन एलिया
नज़्म
यक़ीं मोहकम अमल पैहम मोहब्बत फ़ातेह-ए-आलम
जिहाद-ए-ज़िंदगानी में हैं ये मर्दों की शमशीरें