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नज़्म
मिटाया क़ैसर ओ किसरा के इस्तिब्दाद को जिस ने
वो क्या था ज़ोर-ए-हैदर फ़क़्र-ए-बू-ज़र सिद्क़-ए-सलमानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
ख़ाक-ए-सहरा पे जमे या कफ़-ए-क़ातिल पे जमे
फ़र्क़-ए-इंसाफ़ पे या पा-ए-सलासिल पे जमे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दरीं हसरत सरा उमरीस्त अफ़्सून-ए-जरस दारम
ज़ फ़ैज़-ए-दिल तपीदन-हा ख़रोश-ए-बे-नफ़स दारम
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
शौकत-ए-संजर-ओ-सलीम तेरे जलाल की नुमूद!
फ़क़्र-ए-'जुनेद'-ओ-'बायज़ीद' तेरा जमाल बे-नक़ाब!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लफ़्ज़ों में रक़्स-ओ-रंग-ओ-रवानी तुझी से है
फ़क़्र-ए-गदा में फ़र्र-ए-कियानी तुझी से है
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ये ज़ोम-ए-क़ुव्वत-ए-फ़ौलाद-ओ-आहन देख लो तुम भी
ब-फ़ैज़-ए-जज़्बा-ए-ईमान-ए-मोहकम हम भी देखेंगे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उस दौर से इस दौर के सूखे हुए दरियाओं से
फैले हुए सहराओं से और शहरों के वीरानों से
नून मीम राशिद
नज़्म
ऐ ख़ाक-ए-हिंद तेरी अज़्मत में क्या गुमाँ है
दरिया-ए-फ़ैज़-ए-क़ुदरत तेरे लिए रवाँ है
चकबस्त बृज नारायण
नज़्म
न जाने कितने कितने रंग से दिल को लुभाते हैं
फ़ज़ा में दूर तक फैले हुए वो खेत सरसों के