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नज़्म
गर्म हो तेज़ाब की खौलन से लाले का अयाग़
ग़ुंचा-ए-नौरस का ताक़ और पीर-ए-मकतब का चराग़
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ले रहा है करवटें आरिज़ में यूँ रंग-ए-शबाब
जिस तरह मौज-ए-ख़िरामाँ पर ज़िया-ए-माहताब
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ऐ वतन जोश है फिर क़ुव्वत-ए-ईमानी में
ख़ौफ़ क्या दिल को सफ़ीना है जो तुग़्यानी में
जोश मलीहाबादी
नज़्म
क़ैद भी कर दें तो हम को राह पर लाएँगे क्या
ये जुनून-ए-इश्क़ के अंदाज़ छुट जाएँगे क्या
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़ोफ़ से आँखों के नीचे तितलियाँ फिरती हुई
औज-ए-ख़ुद्दारी से दिल पर बिजलियाँ गिरती हुई
जोश मलीहाबादी
नज़्म
फिर दिल में दर्द सिलसिला-ए-जुम्बा है क्या करूँ
फिर अश्क गर्म-ए-दावत-ए-मिज़्गाँ है क्या करूँ
जोश मलीहाबादी
नज़्म
लबरेज़ॉ£|जोश-ए-हुब्ब-ए-वतन सब के जाम हों
सरशार-ए-ज़ौक़-ओ-शौक़ दिल-ए-ख़ास-ओ-आम हों