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नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वक़्त से पहले बुला लेते हैं पीरी को उलूम
उम्र से आगे निकल जाते हैं चेहरे बिल-उमूम
जोश मलीहाबादी
नज़्म
इतना ख़मीदा हो गया पीरी के हाथ से
करता हूँ इक सलाम भी सौ पेच-ओ-ख़म के साथ
इस्मतुल्लाह इस्मत बेग
नज़्म
मुमकिन है कि पीरी में सुकूँ पा सके वर्ना
जब तक वो जवाँ है ग़म-ए-शौहर भी जवाँ है